Mishthi Magestics

Music to Ears…. Poetry to Souls

#अरमान

आगे बढ़ जाने की होड़ में लोगों को गिरते देखा है।
हमने रिश्तों की आड़ में अपनों को छलते देखा है।।

वह बच्चा कहां समझता है दुनिया के दिखावे को।
अरमानों को मासूम नन्ही आंखों में पनपते देखा है।।

समझ नहीं आता उस की बनाई,दुनिया का दस्तूर।
कुछ प्यासे मर जाते हैं,कुछ का जाम छलकते देखा है।।

नेकियां दरिया में आपको ही डुबो देती हैं आजकल।
हमने आस्तीन में,जहरीले सांप को पलते देखा है।।

कहीं बिखर न जाए रिश्ते,यह सोच कर ठुकरा दी मंजिलें।
किसी और को नहीं मिष्ठी ने,अपनों को जलते देखा है।।

मिष्ठी अरूण

#पतंग

इतने से हैं हम आजाद बस,
की एक उड़ती पतंग,
और हाथ दस।

हम से पूछिए लूट जाने का डर,
ऊंचाइयों को पाने के लिए,
लगा दिया है दांव पर सब।

सिला चाहे जो भी हो,
अब दूर तक उड़ना है ,
की हौसला देता है कौन अब ।

थक गई हूं सुनकर,
कि ठहर जा – यहां ,
किसको मिला है मनचाहा सब ।

ठोकर को ही मंजिल मान लूंगी,
टूटे हुए कदमों से रास्ते नाप लूंगी,
नहीं किसी से सरोबार अब।

अभी नहीं,
लेकिन कभी तो नीचे आऊंगी,
देखने हैं लोगों के रुख बेहिसाब तब।

मिष्ठी अरुण

सब्र

तू सरोवर है सब्र कर ,
पत्थर फेंक कर ताह नापने वालों को,
पानी उछालकर जवाब ना दे ।

आदत है उनकी तू परेशान ना हो,
फितरत है उनकी तू हैरान ना हो।

तू सरोवर है सब्र कर ,
तो क्या हुआ जो तू नदी की तरह
अल्हड़ -बेधड़क चलता नहीं,
समुद्र की तरह हर घड़ी उछलता नहीं,

देता है शीतल जल
तू ही हर रहवासी राहगीर को ,
साल भर जोड़े रखता है ,
बारिश के नीर को ।

अंत में तो यही गिना जाता है
कौन यहां किसके और कितने काम आता है।

मिष्ठी अरुण

मेरी छपी हुई किताब लफ्जों के रंग से एक कविता़….

कसूर

तेरी और मेरी मोहब्बत में बस फर्क इतना सा,
मेरी खुले मन की इबादत सी थी,
तेरी इजाजत के दामन में बंधी सी थी ।

मैं उड़ना चाहता था तेरे साथ आसमां की ओर ,
और तू सदैव निहारती रही धरा की ओर ।

कसूर इसमें तेरा भी नहीं ,
जड़ों से बंद कर बड़ी होती है बेटियां ,
मॉं-बाबुल के मन से जुड़ी होती हैं बेटियां ।

फिर कैसे कह दूं ,
मोहब्बत तेरी अधूरी सी थी ।

मोहब्बत तेरी भी पूरी थी ।
मोहब्बत मेरी भी पूरी थी ।
बस उस खुदा की मंजूरी कुछ अधूरी सी थी।

मिष्ठी अरुण

मेरे गमों से गहरा दुनिया के सवालों का साया है।
इसीलिए हर वक्त खुद को मैंने खूब हंसाया है।।

मंजिल पर टिके रहना भी रोज़ नई मंजिल।
तृषनगी का अंत नहीं मंजिलों ने भटकाया है।।

बदलते मौसम का कहर टूटा भी तो चुनकर।
हमको अजीज था वह एक फूल जो मुरझाया है।।

संभव नहीं सभको खुश कर ले खुद खुश होकर।
हमने अपने ही मंसूबों को हर रोज गिराया है।।

नफा- नुकसान देखकर निभाई जाती रिश्तेदारी।
इस दुनिया ने हमको सब कुछ नए से सिखाया है।।

बदलते दौर में धीरे धीरे सब कुछ बदल गया।
सोचती हूं वह कौन है जो मेरा सरमाया है।।

टिकना संभव ना हुआ विरासत में मिले उसूलों से।
मिष्ठी ने खुद अपने ही मन को भरमाया है।।

मिष्ठी अरुण
स्वरचित रचना

वजूद

उंगली पकड़कर चला था जो,अब आंखे दिखाने लगा है।
समय का फेर देखो,बेटा बडा़ हुआ,अब कमाने लगा है।।

पहुंचा दो थोड़ी सी रोशनी मुझ तक, सांसे रुक सी गई है।
किस तरह बचूं अब,कि यादों का मलबा दबाने लगा है।।

खुल कर जिया भी नहीं,अभी आई और जवानी ढल गई।
था निसार मेरी अदाओं पर,आईना अब चिढाने लगा है।।

गुमान माटी की काया का,हौसलें को पिघलाने को हेै।
झुकी पीठ,झुर्रियां,बूढ़ी काया,वजूद डगमगाने लगा है।।

मिलते थे गर्मजोशी से,हर कोई पीछा छुड़ाना चाहता है।
जालिम जमाना मिष्ठी को मरने से पहले दफनाने लगा है।।

मिष्ठी अरुण
स्वरचित रचना
अमृतसर पंजाब

2 Replies to “Mishthi Magestics”

  1. I wanted to send you the very little remark to finally thank you the moment again over the spectacular techniques you have shared on this page. This has been simply surprisingly open-handed with you to offer unhampered what most of us would’ve offered for sale for an ebook to help make some money on their own, precisely seeing that you might have tried it in case you desired. Those suggestions in addition worked to become good way to realize that some people have the identical keenness similar to my personal own to realize significantly more when it comes to this matter. I believe there are several more pleasant sessions up front for people who scan through your site.

Leave a Reply

Your email address will not be published.